बेरोजगारी

महाविद्यालय की डिग्री लेकर रोजगार की तलाश में भटकते हुए नवयुवक के चेहरे पर निराशा और चिंता का भाव होना आजकल देखना सामान्य सी बात हो गई है. कभी-कभी रोजगार की तलाश में भटकता हुआ युवक अपनी डिग्रियां फाड़ने अथवा जलाने के लिए विवश दिखाई देता है. वह रात को देर तक बैठकर अखबारों के विज्ञापनों को पड़ता है. आवेदन पत्र लिखता है साक्षात्कार लेता है और नौकरी ना मिले पर पुनः रोजगार की तलाश में भटकता रहता है. युवक अपनी योग्यता के अनुरूप नौकरी खोजता रहता है. घर के लोग उसे निकम्मा समझते हैं समाज के लोग आवारा कहते हैं. निराशा की नींद सोता है और आंसुओं के खारे पानी को पीकर समाज को अपनी मौन व्यथा का सुनाता है.
                                                                                         भारत सरकार बेरोजगारी के प्रति जागरुक है तथा इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम भी उठा रही है. परिवार नियोजन, बैंकों का राष्ट्रीयकरण, कच्चा माल एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने की सुविधा, कृषि भूमि की हदबंदी, नए उद्योगों की स्थापना, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना, नेशनल स्किल डेवलपमेंट संस्थान आदि जो बेरोजगारी को दूर करने में एक सीमा तक सहायक सिद्ध हुए हैं. इनको ओर अधिक विस्तृत एवं प्रभावी बनाने की आवश्यकता है.                                                                   

   इस मामले में हम पर परमपिता परमात्मा की फुल कृपा है। उसने हमें बनाया ही ऐसा है कि जहां समस्या हो ही नहींस सकती है,हम वहां भी अच्छी-ख्ाासी समस्या खडी कर लेते हैं। जाति, धर्म, क्षेत्र, वर्ग, भाषा आदि की भूमि पर हमने भ्रष्ट आचरण के उन्नत बीज बोए हैं, जो हर वर्ष समस्याओं की लहलहाती फसलें प्रदान करते चले आ रहे हैं। समस्या सृजन के मामले में हमारा मस्तिष्क इतना उर्वर है कि कुछ न हो तो हम इसी बात पर समस्या पैदा कर सकते हैं कि कोई समस्या क्यों नहीं है। अतः उस परम संंत की खोज करो जहां जानेे के बाद किसी प्रकार की जरूरत नहीं होती हैं ,ज्यादा जाानने के लिए देेखों शाम0730बजे साधना चैनल पर।

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